जयपुर साहित्य महोत्सव

मानव भूषण लिखते है कि लेखक सलमान रुश्दी ने जयपुर साहित्य महोत्सव में अपनी उपस्थिति रद्द कर दी जब उन्हें सूचित किया गया कि “मुंबई अंडरवर्ल्ड से पेशावर हत्यारे” उन्हें मारने के लिए आ रहे है

उदहारण

उम्मीद थी कि बुकर पुरस्कार विजेता लेखक सलमान रुश्दी, जिन्होंने मिडनाइट्स चिल्ड्रन और सैटेनिक वर्सेज लिखी है, जो भारत सहित कई देशों में प्रतिबंधित है, 20 से 24 जनवरी, 2012 को जयपुर साहित्य उत्सव में भाग लेंगे। 20 जनवरी की दोपहर को, रुश्दी ने घोषणा की कि वह भाग लेने के लिए नहीं आ रहे है क्योंकि उन्हें “खुफिया सूत्रों द्वारा सूचित किया गया है कि मुंबई के अपराध जगत से पेशावर हत्यारे उन्हें मारने के लिए आ रहे है”। परन्तु चार दिन बाद एक साक्षात्कार में रुश्दी ने कहा कि पहली हत्या का खतरा वास्तव में खुफिया एजेंसियों के भीतर किसी के द्वारा गढ किया गया था जिससे कि वह अपनी यात्रा ज़बरदस्ती रद्द कर दे.

कई दक्षिणपंथी इस्लामी समूहों ने भी, जैसे कि दारुल उलूम देवबंद, और कई मुख्यधारा राजनीतिक दलों के  सदस्यों ने, कांग्रेस सहित, जो राजस्थान के राज्य में सत्ता में है (जहां जयपुर स्थित है), रुश्दी की यात्रा का सार्वजनिक रूप से विरोध किया था। रुश्दी की यात्रा रद्द कर देने के बाद आयोजकों  ने वादा किया कि वह एक वीडियो लिंक के माध्यम से शामिल होंगे। लेकिन वीडियो लिंक के शुरू होने के कुछ घंटो पहले वह भी सुरक्षा चिंताओं की वजह से रद्द कर दिया गया।

लेखक की राय

जिस तरह से कि रुश्दी मुद्दे को भारत सरकार द्वारा नियंत्रित किया गया है वो शर्मनाक है, और किसी भी चुनाव से पहले कैसे भारत के सभी राजनीतिक दल सिर्फ दक्षिणपंथी धार्मिक एजेंडा की दलाली करते है, इसका प्रतिनिधि है (इस मामले में, उत्तर प्रदेश राज्य में चुनाव, जो मध्य फ़रवरी में शुरू हो रहे थे)। लेकिन मुझे लगता है कि अगर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के लिए लड़ाई लड़ी जानी है तो उस लड़ाई के सैनिकों को रुश्दी और त्योहार के आयोजकों  से अधिक साहस प्रदर्शित करने की जरूरत है। यह शुरू से ही स्पष्ट था कि रुश्दी के जीवन पर कोई विश्वसनीय खतरा नहीं था, और उनकी निजी सुरक्षा के लिए आवश्यक सुरक्षा की व्यवस्था आसानी से की जा सकती थी। हालांकि प्रदर्शनकारियों के द्वारा त्योहार का बाधित किया जाना एक वास्तविक खतरा था, किन्तु अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की पवित्रता की रक्षा करने के लिए इस जोखिम का सामना आयोजकों और रुश्दी को करना चाहिए था। बस यात्रा ही नहीं लेकिन वीडियो लिंक भी रद्द करके आयोजकों और रुश्दी ने भारत के कट्टर तत्वों का हौसला बढ़ाया है और उन्हें संदेश भेजा है कि इस प्रकार की डराने की रणनीति से वास्तव में लोगों को चुप कराया जा सकता है।

- मानव भूषण

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Comments (1)

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  1. Credo che il caso Rushdie abbia un valore particolarmente simbolico. Ogni cittadino, in quanto dotato di questo diritto e dovere di essere tale, dovrebbe impegnarsi contro ogni forma di violenza e intimidazione.
    Nel 2012 non dovrebbero esserci più paesi in cui esprimere i proprio pensieri risulti un pericolo. La violenza nel mondo esiste e quando le persone affrontano questo problema è bene non ostacolarle, ma aiutarle a continuare la loro missione.
    E’ indubbio che gli organizzatori e lo Stato indiano avrebbero dovuto trovare una soluzione al problema. Le intimidazioni non si devono per forza trasformare in azioni. Coloro che pensano di riuscire a fermare l’ondata di giustizia che tumulta negli animi della gente deve capire che il cambiamento è insito nella storia. Ogni paese, ogni epoca è caratterizzata da questa volontà.
    Impegnamoci a difendere i nostri diritti, come ci sono stati dati facilmente ce li possono togliere.
    Come afferma un importante filosofo del diritto italiano Norberto Bobbio “quando le sentinelle della democrazia si assopiscono allora è vicina la catastrofe”.
    Le sentinelle siamo noi. Ognuno di noi deve essere critico e deve cercare di far rispettare i diritti che stanno alla base di una vita dignitosa. Se non si può parlare liberamente la nostra esistenza perde la sua genuinità e la sua sicurezza.
    Il caso sopra presentato deve farci capire che non possiamo fermarci di fronte alle intimidazioni Dobbiamo essere più forti e dobbiamo impegnarci a non temere le conseguenze perchè se non tentiamo, se non lottiamo, non acquisteremo mai nessuna libertà e nessuna giustizia.

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