क्या एक कातिल के पास हक है कि उसे लोग भूल जाये?

2008 में दो दोषी पाए गए हत्यारों ने जर्मन कानून के अनुसार विकिपीडिया और अन्य ऑनलाइन मीडिया के आउटलेट से अपने नाम हटाए जाने की मांग की। क्या व्यक्ति का हक कि उसे लोग भूल जाये जनता के जानने के अधिकार पर प्राथमिकता लेता है?

उदहारण

1993 में वोल्फगैंग वेरले और मैनफ्रेड लुबेर जर्मन अभिनेता वाल्टर सेद्ल्मय्र की हत्या के लिए दोषी ठहराए गए और उन्होंने 14 और 15 साल जेल की सजा काटी। उनकी रिहाई पर, 2007 और 2008 में वेरले और लुबेर कई मीडिया के आउटलेट को अदालत ले गए, न केवल जर्मन डेर स्पीगेल लेकिन अंग्रेजी भाषा के विकिपीडिया को भी, क्योंकि उन्होंने लेख में इन दोनो के नाम का ज़िक्र किया था जिसमे इन्हें हत्यारों के रूप में वर्णित किया गया था। अंग्रेजी भाषा के विकिपीडिया ने इन दोनों के नाम को हटाने से इनकार कर दिया था क्योंकि यह विकिपीडिया के मीडिया की स्वतंत्रता का उल्लंघन होता। यह कंपनी अमेरिका में आधारित है और इसलिए अमेरिका के संविधान के पहले संशोधन द्वारा संरक्षित है। जर्मन कानून उन कंपनियों पर लागू नहीं है जो कि उस देश में आधारित नहीं हैं।

जर्मनी में पहले उदाहरण में एक हैम्बर्ग अदालत ने 2008 में इस बात पर सहमती दिखाई कि संग्रहीत लेख में इन दोनों का नामकरण वेरले और लुबर की गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन करता है और उनके नाम हटाए जाने का आदेश दिया। एक 1973जर्मन अदालत के फैसले के तहत व्यक्तियों के पास यह हक है की अपने दंडात्मक सजा को पूरा करने के बाद उनकी प्रतिबद्धता प्रतिवेदित न हो। तत्पश्चात जर्मन विकिपीडिया संपादकों ने जर्मन विकिपीडिया से उनके नाम हटा दिए। परन्तु 2009 में जर्मन संवैधानिक न्यायालयने यह निर्णय उलट दिया इस आधार पर कि यह प्रेस की स्वतंत्रता के संवैधानिक गारंटी का प्रतिबंध करता है और वेरले और लुबेर को एक निश्चित डिग्री तक अपनी गोपनीयता में घुसपैठ को स्वीकार करना होगा। यह निर्णय इस आधार पर लिया गया था कि सभी अभिलेखागार से जानकारी हटाना विकिपीडिया के लिए बहुत ज्यादा वित्तीय बोझ होगा। इस निर्णय के बाद जर्मन विकिपीडिया पृष्ठ ने अपनी सामग्री में उनके नाम को  पुनः स्थापित कर दिया।

लेखक की राय

वोल्फगैंग वेरले और मेनफ्रेड लुबेर के मामले में व्यक्ति का हक कि लोग उसे भूल जाये और जनता का पता करने के अधिकार – और परिणामस्वरूप मीडिया का रिपोर्ट करने का अधिकार – के बीच में संतुलन की आवश्यकता है। लोगो द्वारा भूल जाने के बहुत अच्छे कारण है लेकिन ऐसे तथ्यों को रिपोर्ट करने की स्वतंत्रता को संरक्षित किया जाना चाहिए जैसे की यह अमेरिका के पहले संशोधन और जर्मन संवैधानिक न्यायालय के द्वारा किया गया है। कुछ परिस्थितियों में जनता को दोषसिद्धि के बारे में जानने का अधिकार है जैसे की अभिशंसित बच्चों का कामी उत्पीड़क जहां यह ज्ञान परिवारों के लिए मूल्यवान होगा कि उनके पड़ोस में इस तरह का दोषसिद्धि आदमी  रहता है। इस मामले में केवल अगर यह  इन दोनो पुरुषों का नाम हटाना संभव होता तब ही यह सही फैसला होता।

इस मामले में यह भी है प्रशन उठता है कि क्या एक विश्व स्तर पर जुड़ी हुई दुनिया में – जहाँ बहुत सारी ऑनलाइन सामग्री नेतिज़ेंस के द्वारा निर्माण किया जाता हैं – यह संभव है कि लोगों को इस तरह के मामलों के बारे में जानकारी का प्रकाशन करने से रोक सके। जबकि कानून कुछ मामलों में नामों के प्रकाशन के खिलाफ संरक्षण प्रदान कर सकता है यह कई बार इंटरनेट के बेकाबू प्रकृति की वजह से असंगत है। इस का उदाहरण है हल ही में आक्रामक त्वीट्स के खिलाफ पुलिस कार्रवाई – जो उचित हो सकता है – लेकिन अक्सर यह सैकड़ों सामान त्वॆत्स के पृष्ठभूमि के खिलाफ होता है जिनका अभियोजन नहीं होता है। एक और दुविधा यह है की दोषियों का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित किये जाने पर रोक लगाना असंभव है और यह घरेलू प्रतिबंध के उद्देश्य को हरा देता है। इसलिए अधिक दिलचस्प सवाल यह है कि क्या राष्ट्रीय कानून गोपनीयता की सुरक्षा के लिए प्रासंगिक हैं।

 

- जूडिथ ब्रुह्न

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Comments (3)

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  1. This case reminded me of the case of an Indian-origin doctor in UK. He was accused of molestation (sexual assault) by a female patient. In the first instance he was found guilty by the medical council but the high court cleared him of all the charges. As expected, the media (both in UK and India) carried the reports of he being found guilty of sexual misconduct. But when the high court cleared him, there was no interest in his case. He then himself contacted newspapers and websites asking them to carry a report on the high court judgment or remove the earlier content. Fortunately for him he was happy with the responses he got.

  2. Your comment is awaiting moderation.

    It is highly controversial issue. In my humble opinion, it shouldn’t be permit to erase any names which belongs to the murderers in the internet or any other sources. I think that these names gives information about these people so anyone would take necessary steps when it comes to closing these people. Disclosing these names would be seen as a security precautions.

  3. Thank you Alexander, I agree with you that everyone deserves a second chance in life, including not being publicly named after he served his sentence.
    But do you think this is still enforceable in this interconnected world in which the internet allows information from all continents to be exchanged? Should foreign companies bow to German law?

    • Your comment is awaiting moderation.

      Sorry. Please forgive me replying too late.
      I agree with you points definitely. The answer to the former question is the fluidity of the information shouldn’t be controlled. As to latter, of course not.
      However, I think this problem may bigger than that circumstance. We should consider the basic rights to live at first. Machine and law both are tools to ensure a normal society, before that, the protection of right of a single man must be concerned. Otherwise, even though regulations are in their way, make no sense.

  4. Certainly, the past doesn’t mean now, especially to persons who had mistake. According to this case, the German court gave a reasonable judgement to murderer. After the decision, we should realize that he ought to have rights to live in the society normally as other people. Therefore, surely, he has fame and privacy. There is no doubt law should protect him in these areas.

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'वाक्-स्वतंत्रता पर चर्चा' ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के सेंट एंटनी कॉलेज में स्वतंत्रता के अध्ययन पर आधारित दह्रेंदोर्फ़ कार्यक्रम के अंतर्गत एक अनुसन्धान परियोजना है www.freespeechdebate.com

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