अधनंगी डचेस

जूडिथ बृहन पड़ताल करती है कि यूरोप में गोपनीयता के क्या सिद्धांत और अभ्यास है और क्या एक अदालत का निषेधाज्ञा कैम्ब्रिज की डचेस की गोपनीयता का निस्तारण करने के लिए पर्याप्त था।

उदहारण

13 सितम्बर 2012 को फ्रांसीसी पत्रिका क्लोज़र ने कैम्ब्रिज की डचेस की अधनंगी तस्वीरें प्रकाशित की जो की खीची गयी थी जब वह शैटॉ डी’औतेत, फ्रांस के दक्षिण में एक निजी निवास, में छुट्टी के समय सन्बैद कर रही थी। 15 सितंबर को आयरिश डेली स्टार ने तस्वीरें प्रकाशित की और 17 सितम्बर को इतालवी पत्रिका ची ने एक विशेष संस्करण जल्दी से निकला।

रॉयल दम्पति ने फ्रेंच अभियोजक के कार्यालय में एक आपराधिक शिकायत दर्ज कराई और नन्तेर्रे में ट्रिब्यूनल डे ग्रांडे उदाहरण में सिविल क्षतिपूर्ति के लिए एक का दावा दायर किया। अदालत ने क्लोज़र के खिलाफ चित्रों का और अधिक  प्रकाशन पर रोक लगाने का आदेश दिया और घोषणा की कि एक आपराधिक जांच शुरू की जाएगी। अदालत ने फ्रांसीसी पत्रिका को चित्रों के डिजिटल फाइलों को अदालत को देने का आदेश दिया। उन्होंने यह तर्कसंगत किया कि तस्वीरें “प्रकृति द्वारा विशेष रूप से दखल देने वाली चीज़ है” और दम्पति की गोपनीयता का उल्लंघन है। फ्रांस में इस आदेश के बाद भी यूरोप में कई पत्रिकाओं ने तस्वीरों को प्रकाशित किया, जैसे की डेनिश पत्रिका से ओग होर और उसकी स्वीडिश बहन पत्रिका से ओच  होर

लेखक की राय

यह सोचा जा सकता है कि यह मामला मानव अधिकारों पर यूरोपीय कन्वेंशन के अनुच्छेद 8, जो की गोपनीयता के हक को गारंटी करता है, और अनुच्छेद 10, जो की मुक्त भाषण और सूचना के प्रसार का हक देता है, के बीच में संघर्ष ला सकता है। तथापि मुझे विश्वास है की इन चित्रों के प्रकाशन के लिए सार्वजनिक हित का दावा गंभीर रूप से नहीं किया जा सकता है और यह कैम्ब्रिज की डचेस की गोपनीयता का एक स्पष्ट रूप से अनुचित घुसपैठ का प्रतिनिधित्व है।

मेरा मानना ​​है कि यह सही है कि इन तस्वीरों को ब्रिटेन में प्रकाशित नहीं किया गया है और की फ्रांसीसी अदालत ने एक आदेश दिया है। परन्तु जैसा कि फ्री स्पीच डिबेट पर मैक्स मोस्ले अपने साक्षात्कार में कहते है कि यह आदेश केट की गोपनीयता को ठीक नहीं कर सकता है। एक बार इस तरह से गोपनीयता का उल्लंघन किया जाए तो फिर उसका बहाल नहीं किया जा सकता है।

- Judith Bruhn

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Comments (1)

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  1. Obviously the ‘horse is out of the barn.” However, we are capable of learning from our mistakes, and acting upon our new knowledge. As we come to understand and accept that we all live in the same world, our ‘standards’ of rights and wrongs must evolve. Does not the ancient phrase of ‘do unto others as you’d have them do unto you’ still hold water?

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